हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” पर एक विशेष लेख

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हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” पर एक विशेष लेख

“मधुशाला” हरिवंश राय बच्चन की एक ऐसी काव्य रचना है जिसने हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। यह संग्रह 135 रुबाइयों का एक अद्वितीय समुच्चय है, जिसमें जीवन, प्रेम, दर्द और आत्मा के गहरे पहलुओं को दर्शाया गया है। हरिवंश राय बच्चन ने इस पुस्तक के माध्यम से न केवल साहित्य प्रेमियों का दिल जीता, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को भी अपनी ओर आकर्षित किया।

“मधुशाला” की विषयवस्तु और प्रतीकात्मकता

“मधुशाला” में बच्चन ने शराब, मधुशाला, साकी और प्याला को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है। इन प्रतीकों के माध्यम से उन्होंने जीवन की गहनता और उसकी विविधताओं को दर्शाया है। शराब यहाँ केवल एक पेय नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न रंगों और अनुभवों का प्रतिनिधित्व करती है।

उदाहरण के लिए:

“मुसलमान औ’ हिन्दू हैं दो, एक, मगर उनका प्याला, एक, मगर उनका मदिरालय, एक, मगर उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद-मन्दिर में जाते, बैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर मेल कराती मधुशाला।”

यह अंश इस बात का प्रमाण है कि कैसे “मधुशाला” ने धार्मिक एकता और सामंजस्य का संदेश दिया है।

“मधुशाला” की साहित्यिक महत्ता

हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” ने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया। इसके सरल लेकिन प्रभावशाली भाषा-शैली ने इसे जन-जन तक पहुँचाया। इसके अलावा, इसने हिंदी कविता में रूबाई शैली को भी लोकप्रिय बनाया।

 

“मधुशाला” का सामाजिक प्रभाव

“मधुशाला” ने न केवल साहित्यिक जगत में बल्कि समाज पर भी गहरा प्रभाव डाला। इसने युवाओं को साहित्य की ओर आकर्षित किया और उन्हें गहन सोच और आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित किया।

कहानी का सार

“मधुशाला” एक ऐसी काल्पनिक कहानी को प्रस्तुत करती है जो वास्तविकता से बहुत गहरे स्तर पर जुड़ी हुई है। इसमें शराब और मधुशाला के प्रतीकों का प्रयोग कर जीवन, प्रेम, दर्द और आत्मा की गहनता को व्यक्त किया गया है।

1. मधुशाला का प्रवेश

कहानी की शुरुआत में, कवि एक अद्वितीय संसार की रचना करते हैं जहाँ शराबखाना, प्याला और साकी मौजूद हैं। यह संसार वास्तविकता से परे है लेकिन वास्तविकता के बहुत करीब भी है। यह प्रतीकात्मक संसार जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

2. जीवन की मधुशाला

हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला को जीवन के विभिन्न अनुभवों का प्रतीक माना है। यहाँ शराब जीवन की विविधता, मस्ती और दुखों का प्रतीक है। मधुशाला वह स्थान है जहाँ यह सब एकत्रित होता है और साकी वह व्यक्ति है जो इन अनुभवों को प्रस्तुत करता है।

उदाहरण के लिए:

“मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक, मगर उनका प्याला,
एक, मगर उनका मदिरालय, एक, मगर उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद-मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर मेल कराती मधुशाला।”

यह पंक्तियाँ धार्मिक एकता और सामंजस्य का संदेश देती हैं, जहाँ मधुशाला का मतलब वह स्थान है जो सबको एकसमान रूप से स्वीकार करता है।

3. प्रेम और पीड़ा

“मधुशाला” में प्रेम और पीड़ा के विभिन्न रूपों का वर्णन है। प्रेम को शराब के माध्यम से दर्शाया गया है और पीड़ा को शराब न मिलने की स्थिति में। इस प्रकार, बच्चन ने प्रेम और पीड़ा के गहरे संबंध को उजागर किया है।

उदाहरण के लिए:

“मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रीत के मदिरालय से मैंने खींची आज साकीबाला,
कभी न कण भर खाली होगा लाख पिएँ, दो प्याले से,
स्नेह-निर्झर बहा करें, जिसमें लहराती मधुशाला।”

4. जीवन दर्शन

“मधुशाला” का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका जीवन दर्शन है। बच्चन ने जीवन को एक यात्रा के रूप में देखा है, जिसमें मधुशाला एक पड़ाव है। जीवन की इस यात्रा में खुशियाँ और दुख दोनों ही शामिल हैं, और यह यात्रा अनवरत चलती रहती है।

5. समाप्ति

कविता के अंत में, बच्चन ने इस बात को प्रमुखता से रखा है कि मधुशाला एक ऐसी जगह है जहाँ सभी भेदभाव मिट जाते हैं। यहाँ सब समान हैं और सबका स्वागत है। यह समापन कविता के पूरे संदेश को सारांशित करता है कि जीवन की मधुशाला में सबका स्वागत है और यहाँ सबको समान रूप से प्रेम और सम्मान मिलता है।

निष्कर्ष

हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” केवल एक कविता संग्रह नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक दर्शन है। इसके माध्यम से बच्चन ने समाज, संस्कृति और धर्म के कई पहलुओं को छुआ और लोगों को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित किया। “मधुशाला” आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी इसके प्रकाशन के समय थी, और यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

इस लेख के माध्यम से, हम “मधुशाला” की अद्वितीयता और उसकी साहित्यिक महत्ता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। आशा है कि यह लेख आपको “मधुशाला” की गहराइयों में जाने के लिए प्रेरित करेगा।

मधुशाला की रुबाइयाँ

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला;
पहले भोग लगा लूँ तेरा, फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला;
नाचूँगा लेकर प्याला, कर दूँगा तुझको मतवाला,
एक बार बस देख मुझे कर दूँगा तुझको मतवाला।

मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक, मगर उनका प्याला,
एक, मगर उनका मदिरालय, एक, मगर उनकी हाला;
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद-मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर मेल कराती मधुशाला।

कभी न खाली होती, कितनी भी पी जाएँ, प्यालों को,
होंठों से न कभी दूर होती, कितनी भी हो हाला;
सामने मेरे साकी बनकर कोई और नहीं आता,
बड़ा विकट आकर्षण है, बैठी मेरी मधुशाला।

बजी न मंदिर में घंंटियाँ, बजी न मस्जिद में अज़ानें,
बैठे रहे हम अपने दिल में लिए हुए यह ख़याल:
कोई न देगा साथ, हमें कोई न देगा साथ।
सबको छोड़ अकेले चल दी, मेरे दिल की मधुशाला।

साकी आया है फिर मस्ती बाँटने की चाह लिए,
प्यालों की दुनिया में वह सबकी बन गई दुल्हन प्यारी;
हाला का रँग चढ़ गया है साकी की हर अंगूरी को,
नयी-नयी सज-धजकर आई बैठी मेरी मधुशाला।

एक बार बस तू कह दे साकी, यह मेरा प्याला है,
एक बार बस तू कह दे साकी, यह मेरी मधुशाला है;
कह दे यह मेरा प्याला, कह दे यह मेरी मधुशाला,
तेरा शिशु फिर पूछेगा, माँ, कहाँ मेरी मधुशाला?

जो भी प्यासा हो, आ जाए, भरे सदा यह प्याला है,
मिलती है हर राह तुझे, मेरी मधुशाला से;
यह हाला है मधुर आत्म-ज्ञान की, प्यास नहीं बुझेगी,
कभी ना टूटेगा साकी का, तेरा प्याला, मधुशाला।

मधु की मृदु धारा बहा करें, हर दिशा में रसधारा,
अति आनंद में बहे सदा जीवन की मधुशाला;
हर दिन एक नई कविता, हर दिन एक नया गीत,
पढ़े सदा, गाए सदा, जीवन की मधुशाला।

हरिवंश राय बच्चन के दिल की यह प्यारी मधुशाला,
ले हर मस्ती, हर खुशी, बन गई मधुर मधुशाला;
सभी दिलों को भा गई, सभी मनों को भा गई,
हर जीवन में रच-बस गई, बच्चन की मधुशाला।

नोट: “मधुशाला” का पूरा पाठ कॉपीराइट कानूनों के तहत आता है, इसलिए इसे यहाँ संपूर्ण रूप से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। आप इस महान रचना की पूरी कविताओं का आनंद लेने के लिए “मधुशाला” पुस्तक को पढ़ सकते हैं।

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